Kids Educational and Motivational stories
Story-1
आपके विचार और क्षमता
एक बरगद के पेड़ के ऊपर एक बाज का घोंसला था। घोसले में उसका अंडा रखा था। वही उस पेड़ के नीचे एक मुर्गी का घोसला था। एक दिन अचानक तेज़ हवा चलने लगी। तेज हवा चलने की वजह से ऊपर के घोसले में रखा हुआ बाज का अंडा नीचे गिर गया और वह सीधे मुर्गी के अंडे के साथ मिल गया। मुर्गी उसे अपना ही अंडा मानकर उसका ध्यान रहती थी। समय आने पर वह अंडा फूट गया जिसमें से एक बाज का बच्चा निकला। लेकिन मुर्गी उसे अपना ही बच्चा मानने लगी। वह बच्चा समय के साथ-साथ मुर्गी के तौर-तरीकों के अनुसार बड़ा हुआ। बाज का बच्चा खुद को एक मुर्गी मानता था. वह मुर्गियों के जितना ही ऊंचा उड़ता और उनके जैसे ही चला करता। एक दिन उसने ऊपर देखा कि धन्य पंछी आसमान की ऊंचाइयों तक उठ रहे थे। तब उसने अपनी मां से पूछा कि वह पंछी कौन है जो इतना ऊंचा हो रहा है?
तब उसकी मां मुर्गी ने जवाब दिया, “वह बाज है।”
“तो फिर हम इतनी ऊंचाई तक क्यों नहीं उड़ पाते?” बाज ने मुर्गी से फिर पूछा।
माँ ने जवाब दिया, “क्योंकि हम मुर्गी है।”
इस कहानी से हमें यह पता चलता है कि हमें अपने विचारों और सोच को बड़ा करते हुए काम को करना है। तभी हम ज्यादा ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं। अगर वह बाज का बच्चा खुद को हौसला देखकर ऊंचा उड़ने की कोशिश करता तो वह एक दिन जरूर ऊंचाइयों तक उड़ पाता। इसीलिए हमें भी अपनी सोच को ऊंचा रखते हुए काम करते जाना है। एक ना एक दिन सफलता हमें जरूर मिलेगी।
Story- 2
आत्मा विश्वास और घमंड
दो अलग-अलग गांव के बीच एक तालाब था। जिसका पानी बहुत ही साफ़ और मीठा था। दोनों गाँव का नाम विजयनगर और संग्रामपुर था। गांव के लोग कभी-कभी उसमें से पानी पीने आया करते थे क्योंकि उनके भी गांव में उनका अपना-अपना तालाब था। एक बार गर्मी में उन दोनों गांव का तालाब सूख गया लेकिन गांव के बीच का तालाब नहीं सुखा। वह हमेशा भरा हुआ रहता था। ऐसे में दोनों गांव के लोग उस तालाब से पानी लेने आने लगे। इससे चलते एक दिन दोनों गांव के लोगों में लड़ाई हो गई और अब वे दोनों तालाब पर अपना हक जमाना चाहते थे।
ऐसे में दोनों गांव के मुखिया ने निर्णय लिया कि वह युध्द करके इसका फैसला करेंगे। ऐसे में दोनों मुखिया एक साधु के पास गए और उससे पूछा कि उन दोनों में से कौन जीतेगा? तब साधु ने कहां की विजय नगर के लोग जीत जाएंगे। यह सुनते ही संग्रामपुर के लोग उदास हो गए लेकिन फिर भी उन्होंने लड़ने का सोचा। अगले दिन दोनों के बीच लड़ाई हुई। विजय नगर के लोग ठीक से युध्द नहीं कर रहे थे क्योंकि साधु ने कहा था की वे लोग जीत जाएँगे। लेकिन संग्रामपुर के लोग पूरी ताकत लगाकर लड़ रहे थे।
लड़ते-लड़ते संग्रामपुर के लोग जीत गए। यह देखकर सारे लोग अचंभित थे कि साधु ने तो कहा था विजय नगर के लोग जीत जाएंगे। लेकिन उसके विपरीत संग्रामपुर के लोग जीत गए। तब दोनों गांव के लोग साधु के पास गए और उनसे इसका कारण पूछा। तब साधु ने बताया, “मैं नहीं जानता था की तुम दोनों में से कौन जीतने वाला है। मैंने तो बस यूं ही कह दिया था कि विजय नगर के लोग जीतेंगे। जंग में विजय नगर के लोगों ने ठीक से लड़ना भी जरूरी नहीं समझा। वे यह सोचकर बड़े आराम से जंग लड़ रहे थे कि वह जीत जाएंगे लेकिन उनका यही आत्मविश्वास उन्हें ले डुबा। इसीलिए घमंड कभी नहीं करना।”
यह कहानी हमें बताता है कि हमें कभी भी अत्यधिक आत्मा विश्वास नहीं करना चाहिए और घमंड नहीं करना चाहिए। इस कहानी से हमें यह भी पता चलता है कि हार के डर से पीठ दिखाकर भागना नहीं चाहिए। सच जानते हुए भी हमें परेशानी का डटकर सामना करना चाहिए।
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